सुब्ह-नुशूर क्यूँ मिरी आँखों में नूर आ गया
सुब्ह-नुशूर क्यूँ मिरी आँखों में नूर आ गया
तेरी नक़ाब उलट गई या कोह-ए-तूर आ गया
वो भी अजीब वक़्त था मुझ पे हयात तंग थी
लेकिन उसी अज़ाब में जीना ज़रूर आ गया
तुम ने तो कोह-ए-क़ाफ़ में उम्र-ए-अज़ीज़ काट दी
लेकिन वो तिफ़्ल क्या करे जिस को शुऊ'र आ गया
इस अर्सा-ए-हिजाब की आख़िर को हद भी है कहीं
तेरी तलाश में कोई दुनिया से दूर आ गया
दुनिया को देख देख के अपनी वज़्अ' बदल गई
वर्ना वो नूर मैं ही था जो सर-ए-तूर आ गया
ज़ाहिद उसे बुरा न कह माना कि रंग सुर्ख़ है
आँखों से मय छलक गई दिल को सुरूर आ गया
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