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जोश पर रंग-ए-तरब देख के मयख़ाने का - रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी कविता - Darsaal

जोश पर रंग-ए-तरब देख के मयख़ाने का

जोश पर रंग-ए-तरब देख के मयख़ाने का

झुक के मुँह चूम लिया शीशे ने पैमाने का

साज़-ए-इशरत से निकलती है सदा-ए-मातम

क्या ये दुनिया है मुरक़्क़ा' मिरे ग़म-ख़ाने का

नज़र आती है हर इक बुत में ख़ुदा की क़ुदरत

सिलसिला का'बे से मिलता है सनम-ख़ाने का

मिल गई मिल गई दाद अपनी वफ़ाओं की मुझे

हंस दिए सुन के वो क़िस्सा मिरे मर जाने का

दर्स ले ज़िदगी-ए-शम्अ' से ऐ परवाने

आशिक़ी नाम है मर मर के जिए जाने का

कुंज-ए-मरक़द में भी आराम से सो ना-मा'लूम

नक़्श अभी दिल में है गुज़रे हुए अफ़्साने का

शम्अ' रो रो के इसी ग़म में घुली जाती है

ख़ून-ए-नाहक़ मिरी गर्दन पे है परवाने का

दीदा-ए-तर ने किए राह में दरिया हाइल

क़स्द उस ने जो किया दिल से कभी जाने का

हरम-ओ-दैर में किस तरह लगे दिल उस का

जिस की नज़रों में हो नक़्शा तिरे काशाने का

देख जाओ मिरे मरने का तमाशा तुम भी

आख़िरी बाब है ये ज़ीस्त के अफ़्साने का

हुस्न और इश्क़ की तफ़्सीर मुकम्मल हो जाए

शम्अ' के साथ रहे तज़्किरा परवाने का

'मख़फ़ी' इस तरह से कुछ उम्र बसर की हम ने

ज़िंदगी का हुआ इतलाक़ न मर जाने का

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In Hindi By Famous Poet Rasool Jahan Begam Makhfi Badayuni. is written by Rasool Jahan Begam Makhfi Badayuni. Complete Poem in Hindi by Rasool Jahan Begam Makhfi Badayuni. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.