अटा है शहर बारूदी धुएँ से
सड़क पर चंद बच्चे रो रहे हैं
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(504) Peoples Rate This
साया सा इक ख़याल की पहनाइयों में था
जवाँ रुतों में लगाए हुए शजर अपने
वो अहल-ए-कहफ़ थे जिन को ज़िया मिली आख़िर
गर्म हर लम्हा लहू जिस्म के अंदर रखना
आस हुस्न-ए-गुमान से टूटी
कितनी ठंडी थी हवा क़र्या-ए-बर्फ़ानी की
किसी दराज़ में रखना कि ताक़ पर रखना
अँधेरों में उजाले खो रहे हैं
खंडर में दफ़्न हुई हैं इमारतें क्या क्या
कितना नादिम हूँ किसी शख़्स से शिकवा कर के
मैं जंग जीत के जब्र-ओ-अना की हार गया