किसी दराज़ में रखना कि ताक़ पर रखना
किसी दराज़ में रखना कि ताक़ पर रखना
मिरे ख़ुतूत-ए-मोहब्बत सँभाल कर रखना
किसी भी दौर में शायद मैं तेरे काम आऊँ
जुदा हो शौक़ से कुछ राब्ता मगर रखना
घटाएँ यास की छाएँगी छट भी जाएँगी
हुजूम-ए-दर्द में क़ाबू हवास पर रखना
ख़ुदा करे कि मिले तुझ को मंज़िल-ए-मक़्सूद
फ़राज़ पा के नशेबों पे भी नज़र रखना
अना को बेच के जीना भी कोई जीना है
बला से जान जो जाती है जाए सर रखना
कभी हो घर में जो मेरा भी इंतिज़ार तुझे
अँधेरी रात में हरगिज़ खुला न दर रखना
ख़ुदा के हाथ है मौत ओ हयात ऐ 'रासिख़'
हवस के दर पे मोहब्बत को मो'तबर रखना
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