जवाँ रुतों में लगाए हुए शजर अपने
जवाँ रुतों में लगाए हुए शजर अपने
निशान सब्त रहेंगे डगर डगर अपने
घटाएँ टूट के बरसें जूँही खुले बादल
सुखा रहे थे परिंदे भी बाल-ओ-पर अपने
हुरूफ़ प्यार के लिक्खे गए सबा पर भी
क़लम के बल पे हैं चर्चे नगर नगर अपने
अजीब लोग हैं मिस्मार कर के शहरों को
बसा रहे हैं ख़लाओं में जा के घर अपने
समर किसी का हो शीरीं कि ज़हर से कड़वा
मुझे हैं जान से प्यारे सभी शजर अपने
हमारा फ़न भी सहाबों में खो गया 'रासिख़'
फ़लक पे पहुँचे हैं यारान-ए-बे-हुनर अपने
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