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अँधेरों में उजाले खो रहे हैं - रासिख़ इरफ़ानी कविता - Darsaal

अँधेरों में उजाले खो रहे हैं

अँधेरों में उजाले खो रहे हैं

नगर के दीप मद्धम हो रहे हैं

हवा में उड़ रही हैं सुर्ख़ चीलें

कबूतर घोंसलों में सो रहे हैं

बहर जानिब तअफ़्फ़ुन बढ़ रहा है

अनोखी फ़स्ल दहक़ाँ बो रहे हैं

अजब अरमाँ है तामीर-ए-मकाँ का

कई सदियों से पत्थर ढो रहे हैं

सर-ए-कोह-ए-तमन्ना कौन पहुँचे

पुराने ज़ख़्म अब तक धो रहे हैं

अटा है शहर बारूदी धुएँ से

सड़क पर चंद बच्चे रो रहे हैं

न पड़ने दी अना पर धूल 'रासिख़'

सराब-ए-ज़र में बरसों गो रहे हैं

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In Hindi By Famous Poet Rasikh Irfani. is written by Rasikh Irfani. Complete Poem in Hindi by Rasikh Irfani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.