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चाँद-तारों ने कोई शय तो छुपाई हुई है - रश्मि सबा कविता - Darsaal

चाँद-तारों ने कोई शय तो छुपाई हुई है

चाँद-तारों ने कोई शय तो छुपाई हुई है

वर्ना क्यूँ रात परेशानी में आई हुई है

उस में तब्दीली मिरी आँखों को मंज़ूर नहीं

वो जो तस्वीर मिरे दिल ने बनाई हुई है

मरने देती है न जीने की इजाज़त है मुझे

एक शय ऐसी मेरी जाँ में समाई हुई है

हम बनाते हैं कोई राहगुज़र रोज़ नई

रोज़ दीवार ज़माने ने उठाई हुई है

कोई शिकवा ही नहीं और किसी से मुझ को

ये मिरी जाँ तो 'सबा' ख़ुद की सताई हुई है

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