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अपने होने का कोई साज़ नहीं देती है - राशिद तराज़ कविता - Darsaal

अपने होने का कोई साज़ नहीं देती है

अपने होने का कोई साज़ नहीं देती है

अब तो तंहाई भी आवाज़ नहीं देती है

जाने ये कौन सी मंज़िल है शनासाई की

ज़ात-ए-मुतलक़ कोई एजाज़ नहीं देती है

अपनी उफ़्ताद तबीअत का गिला क्या हो कि जो

ख़्वाहिशों को पर-ए-पर्वाज़ नहीं देती है

साअत-ए-ख़ूबी गुज़र जाती है आते जाते

पर ये तहरीक-ए-तग-ओ-ताज़ नहीं देती है

जाने क्यूँ अपनी अना दहर से क़ुर्बत के लिए

कोई परवाना-ए-आग़ाज़ नहीं देती है

रात मेरे लिए गिनती है 'तराज़' अपने नुजूम

मेरे होने का मगर राज़ नहीं देती है

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In Hindi By Famous Poet Rashid Taraz. is written by Rashid Taraz. Complete Poem in Hindi by Rashid Taraz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.