आँखों आँखों में मोहब्बत का पयाम आ ही गया
आँखों आँखों में मोहब्बत का पयाम आ ही गया
मर्हबा इज़्न-ए-विदा-ए-नंग-ओ-नाम आ ही गया
आफ़ियत के नाम वहशत का पयाम आ ही गया
लो ये अफ़्साना क़रीब-ए-इख़्तिताम आ ही गया
कम से कम जज़्ब-ए-वफ़ा इतना तो काम आ ही गया
बे-इरादा उन के लब पर मेरा नाम आ ही गया
शैख़ का सब ज़ोहद-ओ-तक़्वा आज काम आ ही गया
जब वो मीना-ए-रवाँ सहबा ब-जाम आ ही गया
मय-कदे में जाने क्या क्या गुल खिलाते शैख़-जी
वो तो रिंदों को ख़याल-ए-एहतिराम आ ही गया
उम्र-भर जिस के लिए आँखें रही हैं फ़र्श-ए-राह
वो अजल का क़ासिद-ए-फ़र्ख़न्दा-गाम आ ही गया
नाज़ थे क्या क्या उरूज-ए-नय्यर-ए-इक़बाल पर
दोपहर के बा'द देखा वक़्त-ए-शाम आ ही गया
अलविदा'अ ऐ ज़ो'म-ए-हस्ती अल-फ़िराक़ ऐ वहम-ए-ज़ीस्त
मौत बन कर मुज़्दा-ए-उम्र-ए-दवाम आ ही गया
ज़ब्त-ए-राज़-ए-ग़म पे सौ जानें भी कर देते निसार
क्या बताएँ बस ज़बाँ पर उन का नाम आ ही गया
हुस्न ने भी करवटें बदली हैं ऐ दिल रात-भर
तेरी पेशानी से दाग़-ए-नंग-ए-ख़ाम आ ही गया
जब कहीं लुत्फ़-ए-सुख़न की बात आई है 'रशीद'
ए'तिबारुल-मुल्क का हर लब पे नाम आ ही गया
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