अब ज़ीस्त मिरे इम्कान में है
अब ज़ीस्त मिरे इम्कान में है
वो लम्हा लम्हा ध्यान में है
कुछ फूल थे वो भी सूख गए
इक हसरत सी गुल-दान में है
इक तानता सोच ने बाँधा था
अब चेहरा रौशन-दान में है
दिल डूबा पहले ग़ुर्बत में
अब पानी कच्चे मकान में है
वो मारका-ए-दिल जीत के भी
फिर तन्हा दिल मैदान में है
है दुश्मन मिरे तआक़ुब में
और आख़िरी तीर कमान में है
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