इस ए'तिबार से वो ज़ूद-रंज अच्छा है
इस ए'तिबार से वो ज़ूद-रंज अच्छा है
ख़फ़ा भी हो तो मिरे साथ साथ रहता है
मैं आफ़्ताब-ए-बदन का क़सीदा लिखता हूँ
वो मेरी रूह को पोशाक-ए-नूर देता है
असा-ए-सब्र से रस्ता बना लिया हम ने
कभी जो राह में दरिया-ए-जब्र आया है
सर-ए-निगाह भी 'राशिद' धनक धनक पैकर
पस-ए-सहाब भी इक चाँद चाँद साया है
(521) Peoples Rate This