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वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं - राशिद मुफ़्ती कविता - Darsaal

वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं

वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं

क्यूँ न पछताए कि साया आसमाँ करता नहीं

जाने क्यूँ इक दूसरे के लोग हैं शिकवा-गुज़ार

कौन किस के हौसलों का इम्तिहाँ करता नहीं

कुछ नहीं खुलता कि आख़िर क्या कहानी है जिसे

लोग सुनना चाहते हैं मैं बयाँ करता नहीं

उस से मिलते वक़्त तुझ को साथ रख्खूँ किस तरह

मैं तो अपने-आप को भी दरमियाँ करता नहीं

मेरी पेशानी पे अपनी मोहर कर देती हैं सब्त

नस्ब जिन राहों पे में अपना निशाँ करता नहीं

मुझ में और हम-पेशगाँ में बस यही इक फ़र्क़ है

माँग है जिस माल की ज़ेब-ए-दुकाँ करता नहीं

सर्फ़ पतवारों के बल पर पार क्या उतरेगा वो

इन हवाओं में जो ऊँचा बादबाँ करता नहीं

हेच है सब की नज़र में देखना 'राशिद' वो शख़्स

अपने बारे में जो ख़ुद कोई गुमाँ करता नहीं

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In Hindi By Famous Poet Rashid Mufti. is written by Rashid Mufti. Complete Poem in Hindi by Rashid Mufti. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.