हवा के लम्स से भड़का भी हूँ मैं

हवा के लम्स से भड़का भी हूँ मैं

शरारा ही नहीं शोला भी हूँ मैं

वो जिन की आँख का तारा भी हूँ मैं

उन ही के पाँव का छाला भी हूँ मैं

अकहरा है मिरा पैराहन-ए-ज़ात

बुरा हूँ या भला जैसा भी हूँ मैं

हवा ने छीन ली है मेरी ख़ुश्बू

मिसाल-ए-गुल अगर महका भी हूँ मैं

मिरे रस्ते में हाइल है जो दीवार

उसी के साए में बैठा भी हूँ मैं

तरस जाता हूँ जिस के देखने को

उसी इक शख़्स से बचता भी हूँ मैं

मैं जिन लोगों की सूरत से हूँ बे-ज़ार

उन्ही में रात दिन रहता भी हूँ मैं

जो मेरी ख़ुश-लिबासी के हैं क़ाएल

उन ही के सामने नंगा भी हूँ मैं

सरासर झूट है जो बात मेरी

उसी इक बात में सच्चा भी हूँ मैं

अगरचे फ़ितरतन कम-गो हूँ फिर भी

जो सच पूछो तो कुछ बनता भी हूँ मैं

बहुत इस शहर में रुस्वा हूँ 'राशिद'

मगर क्या वाक़ई ऐसा भी हूँ मैं

(466) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Rashid Mufti. is written by Rashid Mufti. Complete Poem in Hindi by Rashid Mufti. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.