भले ही मिरा हौसला पस्त होता
भले ही मिरा हौसला पस्त होता
मुक़ाबिल तो कोई ज़बरदस्त होता
गुज़ारा तो पहले भी करता ही था मैं
मज़ा जब था बिल्कुल तही-दस्त होता
तिरी दस्त-गीरी कहाँ और कहाँ मैं
तिरा आसरा ही सर-ए-दस्त होता
मैं फूटा था जिस शाख़ पर बन के कोंपल
उसी शाख़ में काश पैवस्त होता
गिलास एक था पीने वाले कई थे
तो क्या मुंतक़िल दस्त-दर-दस्त होता
कहीं हम को बे-दख़्ल कर दे न कोई
नहीं हम से घर का दर-ओ-बस्त होता
तुम्ही हो जो लाए हो मुझ को यहाँ तक
न तुम नीच होते न मैं पस्त होता
कहा तू ने माना न अफ़सोस अपना!
बुलंदी पे 'राशिद' ब-यक-जस्त होता
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