ज़मीं
जिस से मुझ को शिकायत रही है
कि वो सब के हिस्से में है कुछ न कुछ
एक मेरे सिवा
जिस पे रहना ही कार-ए-अबस था
वही छोड़नी पड़ रही है
तो मैं इतना घबरा रहा हूँ
कि अब
मेरी यक-रंग रोज़ और शब
माह और साल की
सारी उक्ताहटें क्या हुईं
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
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तब्दीली
प्यारा सा ख़्वाब नींद को छू कर गुज़र गया
सवाल गूँज के चुप हैं जवाब आए नहीं
अजब मअरका
ये वाक़िआ तो लगे है सुना हुआ सा कुछ
अजीब ख़्वाहिश
तमाम क़ज़िया मकान भर था
ख़मोश झील में गिर्दाब देख लेते हैं
इस तग-ओ-दौ ने आख़िरश मुझ को निढाल कर दिया
सफ़र से किस को मफ़र है लेकिन ये क्या कि बस रेग-ज़ार आएँ
एक बीमार सुब्ह
मौसम के मुताबिक़ कोई सामाँ भी नहीं है