मौसम के मुताबिक़ कोई सामाँ भी नहीं है
मौसम के मुताबिक़ कोई सामाँ भी नहीं है
और रुत के बदल जाने का इम्काँ भी नहीं है
ढूँडो तो ख़ुशी का कोई पल हाथ न आए
देखो तो यहाँ कोई परेशाँ भी नहीं है
रिश्ते में वो पहली सी तड़प अब नहीं मिलती
हाँ यूँ तो ब-ज़ाहिर वो गुरेज़ाँ भी नहीं है
बस छत के शिगाफ़ों को पड़े घूरते रहिए
यारा भी नहीं महफ़िल-ए-याराँ भी नहीं है
फिर क्यूँ न उसे हमदम ओ हम-ज़ाद बना लें
जब यूँ है कि इस दर्द का दरमाँ भी नहीं है
वो वक़्त भी था हम को ज़माने की ख़बर थी
अब यूँ है कि एहसास-ए-रग-ए-जाँ भी नहीं है
अब क़त्ल की ख़बरों का वो आलम है कि 'अरशद'
सुन कर कोई हैरान ओ परेशाँ भी नहीं है
(463) Peoples Rate This