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मौसम के मुताबिक़ कोई सामाँ भी नहीं है - राशिद जमाल फ़ारूक़ी कविता - Darsaal

मौसम के मुताबिक़ कोई सामाँ भी नहीं है

मौसम के मुताबिक़ कोई सामाँ भी नहीं है

और रुत के बदल जाने का इम्काँ भी नहीं है

ढूँडो तो ख़ुशी का कोई पल हाथ न आए

देखो तो यहाँ कोई परेशाँ भी नहीं है

रिश्ते में वो पहली सी तड़प अब नहीं मिलती

हाँ यूँ तो ब-ज़ाहिर वो गुरेज़ाँ भी नहीं है

बस छत के शिगाफ़ों को पड़े घूरते रहिए

यारा भी नहीं महफ़िल-ए-याराँ भी नहीं है

फिर क्यूँ न उसे हमदम ओ हम-ज़ाद बना लें

जब यूँ है कि इस दर्द का दरमाँ भी नहीं है

वो वक़्त भी था हम को ज़माने की ख़बर थी

अब यूँ है कि एहसास-ए-रग-ए-जाँ भी नहीं है

अब क़त्ल की ख़बरों का वो आलम है कि 'अरशद'

सुन कर कोई हैरान ओ परेशाँ भी नहीं है

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In Hindi By Famous Poet Rashid Jamaal Farooqi. is written by Rashid Jamaal Farooqi. Complete Poem in Hindi by Rashid Jamaal Farooqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.