अब तो इक पल के लिए भी न गंवाएँगे तुम्हें
ख़ुद को हारेंगे मगर जीत के लाएँगे तुम्हें
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(486) Peoples Rate This
बस एक बार तिरा अक्स झिलमिलाया था
नदी को देख कर
क़याम रूह में कर ध्यान से उतर के न जा
दस्त-ए-इम्काँ में कोई फूल खिलाया जाए
यूँ न बेगाना रहो गीत सुनाती है हवा
नज़र में धूल फ़ज़ा में ग़ुबार चारों तरफ़
जंगल की लकड़ियाँ
उड़ती रहती थी सदा ख़ित्ता-ए-वीरान में ख़ाक
क्या कोई याद तिरे दिल को दुखाती है हवा
ख़िलाफ़ सारी लकीरें थीं हाथ मलते क्या