तेरी आवाज़
राह में चलते हुए भीड़ से उकताए हुए
तेरी आवाज़ सुनी मैं ने कई साल के बा'द
सोच कर ज़ेहन परेशान रहा देर तलक
शहर के शोर-ए-ख़ुराफ़ात के हंगामों में
तेरी आवाज़ जो आई तो कहाँ से आई
फिर किसी वहम के नर्ग़े में तो मैं आ न गया
तेरी आवाज़ का सरगम कहीं धोका तो नहीं
देर तक ज़ेहन सवालात में उलझा ही रहा
कोई उम्मीद न जिस बात की थी कैसे हुई
कैसे पथराई हुई आँख में आँसू आए
कैसे फिर भूला हुआ क़िस्सा तुझे याद आया
राह में चलते हुए भीड़ से उकताए हुए
तेरी आवाज़ सुनी मैं ने कई साल के बा'द
तेरी आवाज़ का धोका है अगर वहम मिरा
मुझ को रहना है इसी वहम की सरशारी में
तेरी आवाज़ के धोके से ये महसूस हुआ
कोई ख़्वाहिश हो तमन्ना हो बहकती है ज़रूर
अब भी सीने में कोई चीज़ धड़कती है ज़रूर
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