जंगल की लकड़ियाँ
पहाड़ी रास्तों पर
लकड़ियों की गठरियाँ सर पर सँभाले
जा रहा है आदी-वासी औरतों का क़ाफ़िला
ये क़ाफ़िला कुछ दूर जा कर
गाँव के बाज़ार में ठहरेगा
और फिर लकड़ियाँ सर से उतारी जाएँगी
ख़ूबसूरत जंगलों से काट कर
लाई गई ये लकड़ियाँ
बाज़ार की ज़ीनत बनेंगी
लकड़ियों का बोझ ढो कर
लाने वाली औरतें
ख़ामोश रह कर
दिल ही दिल में
अपने हट्टे-कट्टे मर्दों की
जवाँ-मर्दी के नग़्मे गाएँगी
और गाँव के बाज़ार से कुछ दूर
उन के मर्द
अपनी तेज़ कुल्हाड़ी से
जंगल का सफ़ाया करने में
मसरूफ़ होंगे
ये वही जंगल है जिस का हुस्न
क़ाएम था इन्हीं शैदाइयों से
ज़र्रे ज़र्रे में
इसी जंगल के गोशे गोशे में
शैदाइयों की रूह बस्ती थी
इसी जंगल में उन का जिस्म लाग़र हो चला है
और अपनी ज़िंदगी को
बाक़ी रखने का यही इक रास्ता
इन को नज़र आया है
जंगल ख़त्म कर के ख़ुद वो जीना चाहते हैं
हम तरक़्क़ी के हज़ारों दा'वे
करने वाले दानिश-मंद
अंदर से बहुत ही खोखले हैं
(506) Peoples Rate This