क़याम रूह में कर ध्यान से उतर के न जा
क़याम रूह में कर ध्यान से उतर के न जा
सुकून बख़्श मुझे यूँ तबाह कर के न जा
तमाम उम्र मुझे तिश्नगी रुलाएगी
मिरे वजूद के प्याले में प्यास भर के न जा
कुछ ऐसा कर कि तुझे चाहता रहूँ यूँ ही
समेट ख़ुद को मिरी ज़ात में बिखर के न जा
तिरे लिए तो मुनासिब अभी है दर-बदरी
कि बदले बदले से तेवर हैं आज घर के न जा
तुझे ग़ुरूर मुझे आजिज़ी मिले 'राशिद'
यूँ ए'तिबार के पिंदार से गुज़र के न जा
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