मुसाहिबत का कोई सिलसिला नहीं है क्या
मुसाहिबत का कोई सिलसिला नहीं है क्या
किसी भी शख़्स से अब राब्ता नहीं है क्या
हज़ार लोगों से पूछा सभी हैं ना-वाक़िफ़
यहाँ भी तुझ को कोई जानता नहीं है क्या
तमाम रिश्ते फ़रामोश कर दिए तू ने
तअ'ल्लुक़ात से अब फ़ाएदा नहीं है क्या
अमीर-ए-शहर से है मस्लहत बजा लेकिन
है बात सच तो कहो हौसला नहीं है क्या
ज़बान मैं ने जो खोली तो सब हैं शश्दर क्यूँ
तिरे ख़िलाफ़ कोई बोलता नहीं है क्या
मुआ'मलात में सब ताक़ पर रखेंगे उसूल
ख़ुदा के बंदे तुझे कुछ पता नहीं है क्या
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