वही हम थे कि उस शहर-ए-सुकूँ में
रत-जगों की धूम थी हम से
वही हम हैं कि शहर-ए-बे-अमाँ की भीड़ में
ख़ुद अपनी तन्हाई पे हैराँ हैं
हमारा जब्र-ए-मजबूरी
हमें जब सब्र आमादा बनाता है
तो आँखें इस क़दर शो'ले उगलती हैं
कि ख़ामोशी भी इक
शोर-ए-फ़ुग़ाँ मालूम होती है