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बेबसी - राशिद आज़र कविता - Darsaal

बेबसी

ये जीना क्या ये मरना क्या कुछ भी तो हमारे बस में नहीं

इक जाल बिछा है ख़्वाहिश का और दिल है कि फैला जाता है

हम बचने की जितनी कोशिश करते हैं फँसते जाते हैं

ये रेग-ए-रवान-ए-उम्र ही कुछ ऐसी है कि धँसते जाते हैं

जब रेत हमारे पैरों के नीचे से खिसकने लगती है

दुनिया की तमन्ना बुझती हुई आँखों में सिसकने लगती है

हर साँस उखड़ने से पहले सीने में दहकती जाती है

और धीरे धीरे चादर जिस्म-ओ-जाँ की मसक्ती जाती है

ये जीना क्या ये मरना क्या कुछ भी तो हमारे बस में नहीं

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In Hindi By Famous Poet Rashid Aazar. is written by Rashid Aazar. Complete Poem in Hindi by Rashid Aazar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.