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आबला - राशिद आज़र कविता - Darsaal

आबला

वो रात कितनी अजीब थी

कट नहीं रही थी

कि वक़्त ही जैसे रुक गया था

ज़बान चुप थी

निगाहें इक दास्तान-ए-महरूमी-ए-तमन्ना

सुना रही थीं

बिसात-ए-आग़ोश बुझ गई थी

हमारा ही इंतिज़ार था

फ़र्श-ए-दिल-बरी को

मगर हम अपनी शराफ़त-ए-नफ़्स की

गिराँ-बारियों से मजबूर हो गए थे

ख़ुद अपनी फ़ितरत से

इस क़दर दूर हो गए थे

कि दिल की आवाज़ सुन न पाए

लहू की गर्दिश भी वक़्त के साथ

थम गई थी

हम उस के हक़ में वो आबला थे

जो फूटता है न सूखता है

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In Hindi By Famous Poet Rashid Aazar. is written by Rashid Aazar. Complete Poem in Hindi by Rashid Aazar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.