हयात दी तो उसे ग़म का सिलसिला भी किया
हयात दी तो उसे ग़म का सिलसिला भी किया
क़ज़ा के साथ क़दर को मिरी सज़ा भी किया
उसी ने दर-ब-दरी को नई तलाश भी दी
बुरा तो उस ने क्या ही मगर भला भी किया
बग़ैर माँगे ही देना है शान-ए-मौलाई
मिरा वक़ार भी रक्खा मुझे अता भी किया
तज़ाद उस की मोहब्बत का मैं ही जानता हूँ
जलाया धूप में आँचल का आसरा भी किया
अजीब तरह की है शानदर-ए-दिलबरी 'आज़र'
कि मुझ से ख़ुश भी रहा और मुझे ख़फ़ा भी किया
(432) Peoples Rate This