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दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था - राशिद आज़र कविता - Darsaal

दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था

दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था

न किसी और से दुख अपना कभी कहना था

ग़लती की कि मुरव्वत में मुसीबत झेली

ज़ुल्म बर्दाश्त ही करना था न चुप रहना था

अश्क बन कर जो न बहता तो रगों में बहता

किसी सूरत से लहू था तो उसे बहना था

शुबह होता था कि है रंग-ए-बदन या मल्बूस

बे-लिबासी थी लिबास उस ने कहाँ पहना था

मैं जो मर जाऊँ तो सब लोग कहेंगे 'आज़र'

इतनी बोसीदा इमारत थी इसे ढहना था

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In Hindi By Famous Poet Rashid Aazar. is written by Rashid Aazar. Complete Poem in Hindi by Rashid Aazar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.