दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था
दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था
न किसी और से दुख अपना कभी कहना था
ग़लती की कि मुरव्वत में मुसीबत झेली
ज़ुल्म बर्दाश्त ही करना था न चुप रहना था
अश्क बन कर जो न बहता तो रगों में बहता
किसी सूरत से लहू था तो उसे बहना था
शुबह होता था कि है रंग-ए-बदन या मल्बूस
बे-लिबासी थी लिबास उस ने कहाँ पहना था
मैं जो मर जाऊँ तो सब लोग कहेंगे 'आज़र'
इतनी बोसीदा इमारत थी इसे ढहना था
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