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मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है - रशीदुज़्ज़फ़र कविता - Darsaal

मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है

मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है

वो मेरे साए को मुझ से जुदा दिखाता है

बस एक पल में मिटा देंगी सर-फिरी मौजें

घरौंदे रेत के साहिल पे क्यूँ बनाता है

फ़ज़ा में कमरे की फैली हुई है इक ख़ुशबू

ये कौन आ के किताबें मिरी सजाता है

यही मिला है सिला मुझ को हक़-परस्ती का

कि वक़्त नेज़े पे सर को मिरे उठाता है

मैं उस के इश्क़ में ऐसे मक़ाम पर हूँ जहाँ

उसी का अक्स हर इक आइना दिखाता है

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In Hindi By Famous Poet Rasheeduzzafar. is written by Rasheeduzzafar. Complete Poem in Hindi by Rasheeduzzafar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.