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तर्क-ए-सितम पे वो जो क़सम खा के रह गए - रशीद रामपुरी कविता - Darsaal

तर्क-ए-सितम पे वो जो क़सम खा के रह गए

तर्क-ए-सितम पे वो जो क़सम खा के रह गए

अरमान दिल में अर्ज़-ए-तमन्ना के रह गए

तुम कहते कहते हम से जो शरमा के रह गए

क्या बात थी जो ता-ब ज़बाँ ला के रह गए

देता है साथ कौन किसी का पस-ए-फ़ना

सब दोस्त ता लहद मुझे पहुँचा के रह गए

या मैं ने राह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा से गुरेज़ की

या हम-नफ़स मिरे मुझे समझा के रह गए

अच्छा हुआ न उन का मरीज़-ए-शब-ए-फ़िराक़

सब मोजज़े जनाब-ए-मसीहा के रह गए

दुनिया से जाने वालों का कोई पता नहीं

या रब मिरे ये लोग कहाँ जा के रह गए

क्या उन से उठ सकेंगी मोहब्बत की सख़्तियाँ

जो पाँव राह-ए-इश्क़ में फैला के रह गए

तक़दीर में क़फ़स हो तो क्या इस से फ़ाएदा

दो दिन अगर चमन की हवा खा के रह गए

फिरते हो ऐ 'रशीद' जो तुम उस के साथ साथ

बन कर ग़ुलाम क्या दिल-ए-शैदा के रह गए

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In Hindi By Famous Poet Rasheed Rampuri. is written by Rasheed Rampuri. Complete Poem in Hindi by Rasheed Rampuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.