ये ज़ाविया सूरज का बदल जाएगा साईं
ये ज़ाविया सूरज का बदल जाएगा साईं
साया है मगर साया तो ढल जाएगा साईं
ख़ुद आप के हाथों का तराशा हुआ लम्हा
ख़ुद आप के हाथों से फिसल जाएगा साईं
ये बर्फ़-बदन आप का और मोम का मस्कन
इस धूप नगर में तो पिघल जाएगा साईं
साहिल न रहेगा तही-दामाँ कि समुंदर
इक दिन कोई मोती भी उगल जाएगा साईं
जो राख हुआ जिस्म वो लौ देने लगेगा
जो दीप बुझाया है वो जल जाएगा साईं
इस शहर-ए-दिल-आवेज़ में दिल वालों का सिक्का
पहले भी चला आज भी चल जाएगा साईं
मंज़िल ही तिरी यार 'रशीद' और नहीं है
तू जब भी गया चाँद महल जाएगा साईं
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