ये कौन सा सूरज मिरे पहलू में खड़ा है
ये कौन सा सूरज मिरे पहलू में खड़ा है
मुझ से तो 'रशीद' अब मिरा साया भी बड़ा है
तू जिस पे ख़फ़ा है मिरे अंदर का ये इंसान
उस बात पे मुझ से भी कई बार लड़ा है
देखा जो पलट कर तो मिरे साए में गुम था
वो शख़्स जो मुझ से क़द-ओ-क़ामत में बड़ा है
सदियों उसे पाला है समुंदर ने सदफ़ में
पल-भर के लिए जो मिरी पलकों में जड़ा है
ख़ुर्शीद के चेहरे पे लकीरें हैं लहू की
ख़ंजर सा कोई रात के सीने में गड़ा है
इक लफ़्ज़ जो निकला था सफ़ें दिल की उलट कर
मुद्दत से मिरे लब पे वो बे-जान पड़ा है
टकरा के पलटता हूँ लगातार उधर से
ये संग-सिफ़त कौन सर-ए-राह खड़ा है
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