उठ गई आज चाँद की डोली
उठ गई आज चाँद की डोली
कितनी वीराँ है रात की झोली
अपना साया समेट कर रखना
मुझ से इक भागती किरन बोली
अब तो जाग ऐ शबों की शहज़ादी
तुझ को सोना था उम्र-भर सो ली
साँस रोको चराग़ गुल कर दो
आज बदलेगी चाँदनी चोली
मैं हूँ साथी सुलगते सहरा का
तू ठिठुरती किरन की हम-जोली
एक दरिया सँभल सँभल के चला
एक कश्ती क़दम क़दम डोली
आसमाँ तू अभी ज़मीं पे न आ
मैं ने मुट्ठी अभी नहीं खोली
कब तलक कोई दिल पे कान धरे
कौन समझे 'रशीद' की बोली
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