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पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा - रशीद क़ैसरानी कविता - Darsaal

पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा

पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा

या फिर से धुआँ बन के ख़लाओं में बिखर जा

लहरा किसी छितनार पे ओ मीत हवा के

सूखे हुए पत्तों से दबे पाँव गुज़र जा

चढ़ती हुई इस धूप में साया तो ढलेगा

एहसान कोई रेत की दीवार पे धर जा

बुझती हुई इक शब का तमाशाई हूँ मैं भी

ऐ सुब्ह के तारे मिरी पलकों पे ठहर जा

लहराएगा आकाश पे सदियों तिरा पैकर

इक बार मिरी रूह के साँचे में उतर जा

इस बन में रहा करती है परछाईं सदा की

ऐ रात के राही तू ज़रा तेज़ गुज़र जा

उस पार चला है तो 'रशीद' अपना असासा

बेहतर है किसी आँख की दहलीज़ पे धर जा

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In Hindi By Famous Poet Rasheed Qaisrani. is written by Rasheed Qaisrani. Complete Poem in Hindi by Rasheed Qaisrani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.