मैं ने कहीं थीं आप से बातें भली भली
मैं ने कहीं थीं आप से बातें भली भली
रुस्वा किया है आप ने मुझ को गली गली
मैं ने कहा नहीं था कि शो'ला-बदन हैं लोग
अब क्यूँ दिखा रहे हो हथेली जली जली
गुलशन में जो चली है हवा कितनी तेज़ है
बिखरी पड़ी है शाख़ से कट कर कली कली
एक और शब की राह में आँखें बिछाइए
ये शब ब-सूरत-ए-शब-ए-रफ़्ता ढली ढली
कैसे सरक सरक के भरी गागरें गिरीं
जब मेरे साथ साथ कोई मंचली चली
मैं ने ग़ज़ल सुनाई तो इक अहल-ए-दिल 'रशीद'
सीने पे हाथ रख के पुकारा वली वली
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