गुम-गश्ता मंज़िलों का मुझे फिर निशान दे
गुम-गश्ता मंज़िलों का मुझे फिर निशान दे
मेरी ज़मीन मुझ को मिरा आसमान दे
ज़ख़्मों की आबरू को न यूँ ख़ाक में मिला
चादर मिरे लहू की मिरे सर पे तान दे
ये धड़कनों का शोर क़यामत से कम नहीं
ऐ रब्ब-ए-सौत मुझ को दिल-ए-बे-ज़बान दे
या मुझ से छीन ले ये मज़ाक़-ए-बुलंद-ओ-पस्त
या मेरे बाल-ओ-पर को खुला आसमान दे
माँगा था मैं ने कब ये झुकी गर्दनों का ग़म
रज़्ज़ाक़-ए-ग़म मुझे ग़म-ए-गर्दूं-निशान दे
सैल-ए-सुकूत अब तो रग-ए-जाँ तक आ गया
इज़्न-ए-बयान दे मुझे इज़्न-ए-बयान दे
दामन कुशादा फिर से है ख़ातून-ए-ग़म 'रशीद'
ताज़ा लहू से लिख के नई दास्तान दे
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