दीप से दीप जलाओ तो कोई बात बने
दीप से दीप जलाओ तो कोई बात बने
गीत पर गीत सुनाओ तो कोई बात बने
क़तरा क़तरा न पुकारो मुझे बहती नदियों
मौज-दर-मौज बुलाओ तो कोई बात बने
रात अंधी है गुज़र जाएगी चुपके चुपके
जाल किरनों का बिछाओ तो कोई बात बने
सामने अपने ही ख़ामोश खड़ा हूँ कब से
दरमियाँ तुम भी जो आओ तो कोई बात बने
दास्ताँ चाँद सितारों की सुनाने वालो
तुम मिरा खोज लगाओ तो कोई बात बने
मुंतज़िर मैं तो ब-हर-गाम हूँ साहिल की तरह
सूरत-ए-मौज तुम आओ तो कोई बात बने
झाँकता कौन है अब दिल के शिगाफ़ों में 'रशीद'
ज़ख़्म चेहरे पे सजाओ तो कोई बात बने
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