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सरहद-ए-जिस्म पे हैरान खड़ा था मैं भी - रशीद निसार कविता - Darsaal

सरहद-ए-जिस्म पे हैरान खड़ा था मैं भी

सरहद-ए-जिस्म पे हैरान खड़ा था मैं भी

अपने ही साथ सर-ए-दार लड़ा था मैं भी

वास्ता मुझ को समर से था न तर्ग़ीब से था

नीम-वा हाथों में मिट्टी का घड़ा था मैं भी

रौज़न-ए-वक़्त में दमदार सदा थी किस की

साँप की राह में गठरी में पड़ा था मैं भी

उस के सीने में जहन्नम था लहू भी लेकिन

एक सूली की तरह साथ गड़ा था मैं भी

कुर्रा-ए-अर्ज़ पे नुक़्ते का निशाँ था वर्ना

अपने साए की ज़ख़ामत से बड़ा था मैं भी

लोग आवेज़िश-ए-तक़रीब में किस को रोते

ज़ीस्त का कोस तो था इस से गड़ा था मैं भी

कितनी तारीक शुआ'ओं से लहू भी टपका

तेरी आँखों में सर-ए-शाम जड़ा था मैं भी

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In Hindi By Famous Poet Rasheed Nisar. is written by Rasheed Nisar. Complete Poem in Hindi by Rasheed Nisar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.