मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में
मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में
सहर पुकारती मुझ को तो साथ चलता मैं
मिरे वजूद में ज़िंदा सदी का सन्नाटा
तह-ए-ज़मीं हूँ कोई बोलता सा दरिया मैं
हर एक ज़ाविया मेरे लहू के नाम से है
बता रहा हूँ नई वुसअतों को रस्ता मैं
बहुत से लोग तो जीते ही जी के मरते हैं
बस एक शख़्स कि मरता हूँ रोज़ तन्हा मैं
तू आइना है तिरी ज़ात अजनबी तो नहीं
क़रीब आ तुझे अपना दिखाऊँ चेहरा मैं
ये इस तकल्लुफ़-ए-बेजा की क्या ज़रूरत है
कि एक मिशअल-ए-जाँ था ख़ुशी से जलता मैं
न जाने कौन था दश्त-ए-अज़ल-अबद में 'निसार'
जो अपने आप से मिलता तो क्यूँ बिछड़ता मैं
(448) Peoples Rate This