दुनिया से सभी बुरे भले जाएँगे
क्या ख़ल्क़ से जुज़ गुनाह ले जाएँगे
पीरी से हैं ख़म हश्र में देखेगा कौन
जन्नत में झुके झुके चले जाएँगे
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
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ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं
दिल हमारा जानिब-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम आएगा
नज़र कर तेज़ है तक़दीर मिट्टी की कि पत्थर की
अगर गुल की कोई पती झड़ी है
डर नहीं थूकते हैं ख़ून जो दुख पाए हुए
कभी गेसू न बिगड़े क़ातिल के
बाग़ में जुगनू चमकते हैं जो प्यारे रात को
हम अजल के आने पर भी तिरा इंतिज़ार करते
बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी
गर्दिश-ए-चश्म है पैमाने में
तनख़्वाह-ए-तबर बहर-ए-दरख़्तान-ए-कुहन है
ख़ार-ओ-ख़स फेंके चमन के रास्ते जारी करे