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ख़ार-ओ-ख़स फेंके चमन के रास्ते जारी करे - रशीद लखनवी कविता - Darsaal

ख़ार-ओ-ख़स फेंके चमन के रास्ते जारी करे

ख़ार-ओ-ख़स फेंके चमन के रास्ते जारी करे

बाग़बाँ फ़स्ल-ए-बहार आने की तय्यारी करे

दिल जिगर की या जिगर दिल की अज़ा-दारी करे

एक ही आलम है किस की कौन ग़म-ख़्वारी करे

मेरे दर्द-ए-इश्क़ से ईज़ा है सारी ख़ल्क़ को

मौत बेहतर है जब इतना तूल बीमारी करे

नज़अ हो लेकिन न सर के कूचा-ए-महबूब से

लाख हो बेहोश पर इतनी तू हुश्यारी करे

शार-ए-उल्फ़त ने लिक्खा है किताब-ए-इश्क़ में

वस्ल हो या हिज्र सारी रात बेदारी करे

ऐ जुनूँ बे-साख़्ता है आफ़ियत मद्द-ए-नज़र

ऐसा आलम हो कि आलम इस से बे-ज़ारी करे

तेरे जिस पहलू में बैठे दिल जिगर हैं शाद शाद

उठ गए कह कर कोई किस की तरफ़-दारी करे

इश्क़ गलियों में फिरे लेकिन न हो पर्दा-दरी

हुस्न पर्दे में रहे और गर्म बाज़ारी करे

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In Hindi By Famous Poet Rasheed Lakhnavi. is written by Rasheed Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Rasheed Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.