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हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त - रशीद लखनवी कविता - Darsaal

हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त

हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त

मेरे बिस्तर पर मुझे तड़पा रही है बू-ए-दोस्त

ख़त्म ज़ीनत हो गई मश्शाता ने ले लीं बलाएँ

गेसू-ए-पुर-ख़म ने चूमे शाना-ओ-बाज़ू-ए-दोस्त

इम्तिहाँ क़ुव्वत का है तलवार उठाई जाती है

अब तो इस क़ाबिल हुए हैं पंजा-ओ-बाज़ू-ए-दोस्त

ज़ख़्म खाता बढ़ के मैं और वो लगाता बढ़ के तेग़

दिल मिरा बढ़ता तो बढ़ती क़ुव्वत-ए-बाज़ू-ए-दोस्त

घट गया याँ ख़ून और वाँ फ़स्द का सामाँ हुआ

आ गया ग़श मुझ को जब बाँधा गया बाज़ू-ए-दोस्त

जान आधी रह गई देखी जो ग़ुस्से की नज़र

दिल पे इक बिजली गिरी जब हिल गए अबरू-ए-दोस्त

मुझ को जिन से इश्क़ है उन को है मुझ से दुश्मनी

याँ वो आते थे कि उलझे पाँव गेसू-ए-दोस्त

का'बा जिस को लोग कहते हैं मकाँ है यार का

अर्श-ए-आज़म नाम रखते हैं ज़मीन-ए-कू-ए-दोस्त

मेरे सीने में हुई क्यूँ ख़ाना-ए-दिल की बिना

ये मकाँ बनने के क़ाबिल थी ज़मीन-ए-कू-ए-दोस्त

ज़ख़्मी-ए-उल्फ़त हूँ मैं सेहत नहीं होगी मुझे

भर रही है दिल के ज़ख़्मों में हवाए कू-ए-दोस्त

बख़्शती है रूह को हर मर्तबा इक ताज़गी

मुझ को मरने ही नहीं देती हवा-ए-कू-ए-दोस्त

तालिब-ए-दीदार हैं है साफ़ आँखों से अयाँ

गो कि मुँह से कुछ नहीं कहते गदा-ए-कू-ए-दोस्त

दुश्मन ईज़ा देते हैं हर मर्तबा मुझ को 'रशीद'

ग़ुस्सा आता है मगर मैं देखता हूँ सू-ए-दोस्त

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In Hindi By Famous Poet Rasheed Lakhnavi. is written by Rasheed Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Rasheed Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.