हाए शर्म-ए-दिलबरी उस दिलरुबा के हाथ है
हाए शर्म-ए-दिलबरी उस दिलरुबा के हाथ है
इस वफ़ा की आबरू उस बेवफ़ा के हाथ है
जानता है काम बंदे का ख़ुदा के हाथ है
दिल मिरा खुलना तिरे बंद-ए-क़बा के हाथ है
आह-ए-गिर्या साथ हों ग़ुर्बत में जब आता है ध्यान
बेकसी कहती है ये आब-ओ-हवा के हाथ है
कब तक आओगे अदम में पूछते हैं राह-रौ
किस से कहिए उस तरफ़ आना क़ज़ा के हाथ है
हाथ उठाता हूँ ख़ुदा के सामने मैं ऐ 'रशीद'
ढूँढना बाब-ए-इजाबत को दुआ के हाथ है
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