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अगर गुल की कोई पती झड़ी है - रशीद लखनवी कविता - Darsaal

अगर गुल की कोई पती झड़ी है

अगर गुल की कोई पती झड़ी है

तो सौ सौ बार बुलबुल गिर पड़ी है

नज़र क्या जाए सू-ए-शीशा-ओ-जाम

हमारी आँख साक़ी से लड़ी है

ये है जोश-ए-बहार उन के चमन में

कि हर इक शाख़ फूलों की छड़ी है

सुनी रिफ़अत सुलैमाँ की तो बोले

हमारी इक अँगूठी गिर पड़ी है

तुम्हारी ज़ुल्फ़ से कम है शब-ए-हिज्र

मगर रोज़-ए-क़यामत से बड़ी है

इक आने का है इक जाने का हंगाम

ये क़िस्सा ज़िंदगी का दो-घड़ी है

नहीं हटती तुम्हारे चेहरे से ज़ुल्फ़

ये शायद बोसा लेने पर अड़ी है

हज़ारों दाग़ लाखों हसरतें हैं

हमारे दिल की भी बस्ती बड़ी है

हुआ क्या जिल्द-ए-ख़ाक अपना तन-ए-ज़ार

जहाँ हम थे वहाँ मिट्टी पड़ी है

मरे हैं दर पे हम वो पूछते हैं

ये किस की लाश रस्ते में पड़ी है

जो देखी है निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी

तो बिजली लड़खड़ा के गिर पड़ी है

जो अपना माल होगा ख़ैर होगा

'रशीद' अब तो हमें दिल की पड़ी है

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In Hindi By Famous Poet Rasheed Lakhnavi. is written by Rasheed Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Rasheed Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.