वक़्त के क़द्र-दाँ की नज़रों में
ज़िंदगी मुख़्तसर नहीं होती
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ये किस को जाग जाग के तारों की छाँव में
तरह-ए-कशां जिसे हिज्रान-ए-यार कहते हैं
हिम्मत-ए-आली का इतना तो ज़ियाँ होना ही था
आँसू की तरह पोंछ के फेंका गया हूँ मैं
हिरास है ये अज़ल का कि ज़िंदगी क्या है
क़ैद में रक्खा गया क़तरा तो ग़लताँ हो गया
हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ