तरह-ए-कशां जिसे हिज्रान-ए-यार कहते हैं

तरह-ए-कशां जिसे हिज्रान-ए-यार कहते हैं

हम उस को वस्ल हमेशा बहार कहते हैं

रवा-रवी में जो ख़ाका सा खिंच गया था कभी

उसे भी मोतक़िदाँ शाह-कार कहते हैं

वो मोहमलात से नुक्ते निकाल सकता है

इसे फ़तानत-ए-अन्क़ा शिकार कहते हैं

नहीं हैं सनअत-ए-ज़ुल-वज्हतैन के क़ाएल

कि हर्फ़-ए-हक़ हो तो हम आश्कार कहते हैं

बहार नाम है तहज़ीब-ए-मौसम-ए-दिल का

अवाम मौसम-ए-गुल को बहार कहते हैं

उन्हीं से पूछ कि ये इस्तिआरा किस से है

नफ़स को जो नफ़स-ए-मुस्तआर कहते हैं

वफ़ा न कर तो हमारी वफ़ा की दाद ही दे

तिरे फ़िराक़ को हम इंतिज़ार कहते हैं

यहीं तलक जो मिरे साथ आ के लौट गए

वो संग-ए-मील को संग-ए-मज़ार कहते हैं

किनार-ए-यार वहाँ से बस इक शलंग पे है

वो जिस को कज-कुलहाँ औज-दार कहते हैं

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In Hindi By Famous Poet Rasheed Kausar Farooqi. is written by Rasheed Kausar Farooqi. Complete Poem in Hindi by Rasheed Kausar Farooqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.