घर भी है घर में सभी अपने भी हैं
हाँ मोहब्बत की मगर ख़्वाहिश न कर
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तन्हाइयों के दर्द से रिसता हुआ लहू
शो'ला शमीम-ए-ज़ुल्फ़ से आगे बढ़ा नहीं
राह में क़दमों से जो लिपटी सफ़र की धूल थी
हाँ अभी कुछ देर पहले शेर की गूँजी थी धाड़