आए अगर क़यामत तो धज्जियाँ उड़ा दें
फिरते हैं जुस्तुजू में फ़ित्ने तिरी गली के
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आशिक़ को तेरे लाख कोई रहनुमा मिले
कौन सा इश्क़-ए-बुताँ में हमें सदमा न हुआ
आईना ख़ुद-नुमाई उन को सिखा रहा है
दुश्मन की बात जब तिरी महफ़िल में रह गई
रास आया है मुझे वहशत में मर जाना मिरा
आने को नज़र में मिरी सौ फ़ित्ना-गर आए
जी चाहा जिधर छोड़ दिया तीर अदा को
वो ख़ुश किसी के साथ हैं ना-ख़ुश किसी के साथ
बअ'द-ए-फ़ना भी ख़ैर से तन्हा नहीं हैं हम
साक़ी जो दिए जाए ये कह कर कि पिए जा
'रसा' को दिल में रखते हैं 'रसा' के जानने वाले