'रसा' को दिल में रखते हैं 'रसा' के जानने वाले
'रसा' को दिल में रखते हैं 'रसा' के जानने वाले
वफ़ा की क़दर करते हैं वफ़ा के जानने वाले
तिरी तेग़-ए-अदा खिंचते ही अपनी जान जाती है
क़ज़ा से पहले मरते हैं क़ज़ा के जानने वाले
भरी हैं शोख़ियाँ लाखों तिरी नीची निगाहों में
हमीं हैं कुछ तिरी शर्म-ओ-हया के जानने वाले
मिरी फ़रियाद सुन कर कुछ उन्हें परवा नहीं होती
निडर बैठे हैं आह-ए-ना-रसा के जानने वाले
'रसा' को सब ने समझाया मगर समझा न कुछ ज़ालिम
हुए मजबूर उस मर्द-ए-ख़ुदा के जानने वाले
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