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मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे - रसा चुग़ताई कविता - Darsaal

मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे

मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे

लाज़िम नहीं हर शख़्स ही अच्छा मुझे समझे

है कोई यहाँ शहर में ऐसा कि जिसे मैं

अपना न कहूँ और वो अपना मुझे समझे

हर-चंद मिरे साथ रहे अहल-ए-बसीरत

कुछ अहल-ए-बसीरत थे कि तन्हा मुझे समझे

मैं आज सर-ए-आतिश-ए-नमरूद खड़ा हूँ

अब देखिए ये ख़ल्क़-ए-ख़ुदा क्या मुझे समझे

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In Hindi By Famous Poet Rasa Chughtai. is written by Rasa Chughtai. Complete Poem in Hindi by Rasa Chughtai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.