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कुछ न कुछ सोचते रहा कीजे - रसा चुग़ताई कविता - Darsaal

कुछ न कुछ सोचते रहा कीजे

कुछ न कुछ सोचते रहा कीजे

आसमाँ देखते रहा कीजे

चार-दीवारी-ए-अनासिर में

कूदते-फाँदते रहा कीजे

इस तहय्युर के कार-ख़ाने में

उँगलियाँ काटते रहा कीजे

खिड़कियाँ बे-सबब नहीं होतीं

ताकते-झाँकते रहा कीजे

रास्ते ख़्वाब भी दिखाते हैं

नींद में जागते रहा कीजे

फ़स्ल ऐसी नहीं जवानी की

देखते-भालते रहा कीजे

आईने बे-जहत नहीं होते

अक्स पहचानते रहा कीजे

ज़िंदगी इस तरह नहीं कटती

फ़क़त अंदाज़ते रहा कीजे

ना-सिपासान-ए-इल्म के सर पे

पगड़ियाँ बाँधते रहा कीजे

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In Hindi By Famous Poet Rasa Chughtai. is written by Rasa Chughtai. Complete Poem in Hindi by Rasa Chughtai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.