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हाथ में ख़ंजर आ सकता है - रसा चुग़ताई कविता - Darsaal

हाथ में ख़ंजर आ सकता है

हाथ में ख़ंजर आ सकता है

या फिर साग़र आ सकता है

आँखें ज़ख़्मी हो सकती हैं

ज़र्रा उड़ कर आ सकता है

छत के ऊपर सोने वाले

सूरज सर पर आ सकता है

ख़्वाब में आने वाला इक दिन

ख़्वाब से बाहर आ सकता है

काला जादू करने वाला

मशअल ले कर आ सकता है

सारे मंज़र छुप सकते हैं

ऐसा मंज़र आ सकता है

शायद कोई आने वाला

लम्हा बेहतर आ सकता है

घर का रस्ता भूलने वाला

चौराहे पर आ सकता है

मिट्टी हिजरत कर सकती है

दरिया चल कर आ सकता है

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In Hindi By Famous Poet Rasa Chughtai. is written by Rasa Chughtai. Complete Poem in Hindi by Rasa Chughtai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.